तालिबान सरकार के वर्तमान अध्यक्ष मुल्ला अब्दुल गनी बरादर कौन हैं

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मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, जिसे मुल्ला बरादार या मुल्ला ब्रदर भी कहा जाता है, अब्दुल गनी बरादर को मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक बताया जाता है।

वह अंतरिम तालिबान सरकार के वर्तमान अध्यक्ष हैं वह मुल्ला मोहम्मद उमर के डिप्टी थे, मुल्ला अब्दुल गनी बरादर चार लोगों में से एक है जिसने 1994 में अफगानिस्तान में तालिबान आंदोलन की शुरुआत की थी।

काबुल (Kabul) पर तालिबान (Taliban) लड़ाकों के कब्जे के बाद अब अफगानिस्तान (Afghanistan) में सत्ता बदलाव हो चुका है. मुल्ला बरादर (Mullah Baradar) का देश का नया प्रमुख बनना बताया जा रहा है.

वो तालिबान के संस्थापक नेताओं में रहे हैं. जानते हैं कौन हैं मुल्ला बरादर और कैसे वो तालिबान में इतने ताकतवर बन गए अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो चुका है. 15 अगस्त को तालिबान लड़कों ने काबुल में प्रवेश किया.

वहां राष्ट्रपति के महल पर कब्जा कर लिया. इससे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर अपने परिवार के साथ ताजिकिस्तान चले गए.

तालिबान ने घोषणा की है कि अफगानिस्तान में अब शरिया कानून लागू होगा. इन सबके बीच ये मान जा रहा है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अब देश के प्रमुख होंगे.

मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर उन 04 लोगों में एक हैं, जिन्होंने 1994 में तालिबान का गठन किया था. साल 2001 में जब अमेरिकी नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान में फौजों ने कार्रवाई शुरू की तो वो मुल्ला बरादर की अगुवाई में विद्रोह की खबरें आने लगीं.

अमेरिकी सेनाएं उन्हें अफगानिस्तान में तलाशने लगीं लेकिन वो पाकिस्तान भाग निकले थे. फ़रवरी 2010 में अमेरिका ने उन्हें पाकिस्तान के कराची शहर से गिरफ़्तार कर लिया.

वर्ष 2012 तक अफ़ग़ानिस्तान सरकार शांति वार्ता को बढ़ावा देने के लिए जिन बंदियों की रिहाई की मांग करती थी, उसमें उनका हर लिस्ट में होता था. सितंबर 2013 में वो रिहा हो गए.

इसके बाद उनका ठिकाना कहां रहा, ये किसी को पता नहीं था. जब अफगानिस्तान में 90 के दशक में तालिबान बना था. तब उसके प्रमुख मुल्ला मोहम्मद उमर थे. बरादर ना केवल उनके खास थे बल्कि उनके नजदीकी रिश्तेदार भी थे.

कहा जाता है कि बरादर की बहन मुल्ला उमर की बीवी थीं. तालिबान के 90 के दशक के ताकतवर कुख्यात राज में वो दूसरे बड़े नेता थे. 1994 में तालिबान के गठन के बाद उन्होंने एक कमांडर और रणनीतिकार की भूमिका ली थी.

लिहाजा ये मान लेना कि अब उनके आने के बाद तालिबान राज में कोई लचीलापन आ जाएगा, कहना बहुत मुश्किल है. तब तालिबान राज में मुल्ला बरादर को उनके कठोर रवैये के कारण ज्यादा जाना जाता था.

लोकतंत्र, महिलाओं, खुले विचारों और बेहतर देश को लेकर उनके खयाल बहुत इस्लामी नजरिए वाले थे. तब वो तालिबान में मुल्ला उमर के बाद दूसरे नंबर के नेता थे.

लेकिन अफगानिस्तान में हाल के बरसों में जब भी शांति वार्ताएं शुरू हुईं तो उन्हें इसमें शामिल करने के पक्ष में सरकार और उसके अधिकारी भी रहते थे.उन्हें लगता था कि वार्ता के जरिए उन्हें मनाया जा सकता है.

अब्दुल गनी बरादर तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख भी है दुनिया के अन्य मुल्कों से बातचीत की जिम्मेदारी अब्दुल गनी के हाथों में ही है, इस समय वह तालिबान के शांति वार्ता दल का नेता है।

यहां तक कि अमेरिकी सरकार भी उन्हें बातचीत के लिए मुफीद मानती रही है. अमेरिका और मुल्ला बरादर के बीच क्या समझौता पिछले दिनों हुआ, इसके बारे में बेशक दुनिया को नहीं पता लेकिन अमेरिका को साफ अंदाज रहा होगा कि उनके अफगानिस्तान से निकलते ही तालिबान को खुलकर खेलने और अफगानिस्तान पर फिर से काबिज होने का आसान मौका मिल जाएगा. मुल्ला बरादर भी हमेशा से ही अमेरिका के साथ वार्ता का समर्थन करते रहे थे.

मुल्ला बरादर को 2010 में आईएसआई ने कराची से गिरफ्तार कर लिया था बाद में 2018 में पाकिस्तान ने उसे रिहा कर दिया था।अब मुल्‍ला बरादर तालिबान की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के अलावा सैन्‍य अभियानों का भी नेतृत्‍व करता है।

तालिबान के काबुल में प्रवेश करने की खबरों के बीच काबुल में तनाव भी बढ़ता जा रहा है गौर हो कि अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्‍तान क्‍या छोड़ा, 4 महीने में तालिबानी काबुल तक पहुंच गए हैं और वहां की सत्ता पर काबिज होने जा रहे हैं।

इंटरपोल के मुताबिक मुल्ला बरादर का जन्म उरूज़गान प्रांत के देहरावुड ज़िले के वीटमाक गांव में 1968 में हुआ था. माना जाता है कि उनका संबंध दुर्रानी क़बीले से है. पूर्व राष्ट्रपति हामिद क़रज़ई भी दुर्रानी ही हैं.

1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान राज के दौरान वो कई पदों पर रहे. वो हेरात और निमरूज प्रांतों के गर्वनर थे. पश्चिम अफगानिस्तान की सेनाओं के कमांडर थे. अमेरिकी दस्तावेजों में उन्हें तब अफगानिस्ता की सेनाओं का उपप्रमुख और केंद्रीय तालिबान सेनाओं का कमांडर बताया गया था.

जबकि इंटरपोल की रिपोर्ट कहती है कि वो तब अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री भी थे.

 

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