संसद में अशोक स्‍तंभ पर नया विवाद, शेरों को लेकर विपक्ष ने जताई आपत्ति; एक नेता ने तो यहाँ तक कहा की शेरो की जगह भेड़की मूर्ति लगवाए सरकार

New controversy over Ashoka Pillar in Parliament, opposition raised objections to lions; One leader even said that instead of lions, a statue of a sheep should be installed by the government.

नई दिल्ली। नए संसद भवन के निर्माण के वक्त से ही लगातार विरोध कर रहे विपक्षी दलों ने अब भवन के ऊपर स्थापित अशोक स्तंभ के मूल स्वरूप से अलग होने और शांत सौम्य शेरों की जगह गुस्सैल शेर प्रदर्शित करने का आरोप लगाया है। उन्होंने इसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान बताते हुए तत्काल बदलने की मांग की है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और राजद नेताओं की ओर से व्यंग्य किया गया कि अशोक काल की मूलकृति की जगह निगल जाने की प्रवृत्ति का भाव है। एक दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए संसद भवन के ऊपर सामने की ओर अशोक स्तंभ की प्रतिकृति (राष्ट्रीय चिह्न) का अनावरण किया था। पूजा-अर्चना भी की गई थी और विपक्षी दलों ने इस पर सवाल खड़ा किया था।

विपक्षी नेताओं ने कहा था कि संसद सरकार की नहीं होती, लिहाजा अनावरण लोकसभा अध्यक्ष को करना चाहिए था। भाजपा की ओर से स्पष्ट किया गया था कि संसद का निर्माण सरकार कर रही है। निर्माण पूरा होने के बाद उसे संसद को हस्तांतरित कर दिया जाएगा। लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। मंगलवार की सुबह से ही कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, तृणमूल सांसद जवाहर सिरकार व महुआ मोइत्रा, राजद ने ट्वीट कर नया विवाद खड़ा कर दिया।

कांग्रेस नेताओं ने बोला हमला

अधीर रंजन ने लिखा, ‘कृपया दोनों कृति में शेरों के चेहरे को देखिए. यह सारनाथ को प्रदर्शित करता है या फिर गीर के शेर को। इसे देखिए और जरूरत हो तो दुरुस्त कीजिए।’ कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘सारनाथ के अशोक स्तंभ पर बने शेरों का चरित्र और प्रकृति को बदलना कुछ और नहीं बल्कि भारत के राष्ट्रीय चिह्न का अपमान है।’

आरजेडी ने दी प्रतिक्रिया,अशोक स्‍तंभ

सारनाथ की मूलकृति से इसके भिन्न होने की फोटो लगाते हुए राजद ने कहा, ‘मूलकृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव और अमृतकाल में बनी कृति के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सब कुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृत्ति का भाव है। हर प्रतीक चिह्न इंसान की आंतरिक सोच को दर्शाता है।’ इससे पहले जवाहर सिरकार ने भी कुछ ऐसा ही ट्वीट किया था।

महुआ मोइत्रा ने दोनों फोटो शेयर की,अशोक स्‍तंभ

तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीटर पर नए और पुराने अशोक स्तंभ की तस्वीर शेयर की। उन्होंने लिखा है कि सच कहा जाए, सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते में संक्रमण लंबे समय से आत्मा में पूरा हुआ है। दोनों तस्वीर साझा करते हुए कर यह बताने की कोशिश की है कि संसद में लगा अशोक स्तंभ बदला हुआ है।

संजय सिंह ने अशोक स्‍तंभ पर उठाया सवाल

वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए भाजपा पर आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय चिन्ह ही बदल दिया। संजय सिंह ने एक ट्वीट को शेयर करते हुए सवाल उठाया कि मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूं कि राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को राष्ट्र विरोधी बोलना चाहिए कि नहीं बोलना चाहिए। संजय सिंह ने जो ट्वीट किया, उसमें लिखा था कि पुराने अशोक स्तंभ में सिंह जिम्मेदार शासक की तरह गंभीर मुद्रा में दिखता है, वहीं दूसरे (संसद की छत पर लगने वाले) में सिर्फ खौफ फैलाने वाला जैसा लग रहा है।

सरकार ने दिया जवाब

जवाब में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने भी दोनों का फोटो ट्वीट करते हुए समझाया कि यह फर्क क्यूं दिख रहा है। उन्होंने कहा कि यह देखने वाले की आंखों पर निर्भर करता है कि वह क्या देखना चाहता है। सारनाथ की मूलकृति 1.6 मीटर की है जबकि संसद पर लगी कृति 6.5 मीटर की है। अगर इसे सारनाथ के आकार में ही कर दिया जाए तो दोनों बिल्कुल एक जैसे लगेंगे। संसद भवन पर स्थापित अशोक स्तंभ 33 मीटर की ऊंचाई पर है। वहां मूल कृति के आकार की कृति लगाने से कुछ भी नहीं दिखता। लिहाजा बड़ी कृति लगाई गई है। अगर अशोक स्तंभ की मूलकृति को भी नीचे से देखा जाए तो वह उतनी ही सौम्य या गुस्सैल दिख सकती है जिसकी अभी चर्चा हो रही है।

भाजपा के इंटरनेट मीडिया प्रभारी अमित मालवीय ने कहा कि आलोचक प्रिंट में निकाली गई 2डी इमेज की विशालकाय 3डी इमेज के साथ तुलना कर रहे हैं, इसीलिए भ्रमित हैं।

इस बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि ने कहा कि मूल स्तंभ 7-8 फीट का है जबकि यह लगभग 21 फीट का है। इस तरह के अंतर के साथ परिप्रेक्ष्य बदलता है। जमीनी स्तर से देखने पर कोण अलग होता है लेकिन सामने से देखने पर साफ होता है कि इसे कापी करने का अच्छा प्रयास है। 1905 में उत्खनित अशोक स्तंभ को भारत के संसद भवन के ऊपर स्थापित करने के लिए कापी किया गया था। विपक्षी नेताओं के दावों को बेबुनियाद या बेमानी नहीं कहेंगे, लेकिन इस पर राजनीतिक टिप्पणी करना ठीक नहीं है।

नए संसद भवन को लेकर लगातार होता रहा है विवाद मालूम हो कि नए संसद भवन के निर्माण के वक्त से ही विवाद खड़ा है। कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट तक में याचिका दाखिल कर संसद भवन और सेंट्रल विस्टा के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की थी जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया था। विपक्ष का आरोप था कि सरकार बेवजह पैसा खर्च कर रही है, जबकि सरकार की ओर से दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे कि पुराना भवन अब खतरनाक हो गया है। नया संसद भवन बनाने का सुझाव सबसे पहले कांग्रेस काल में तब आया था जब मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष थीं

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