Akash Anand: लंदन से MBA, युवा चेहरा, नेशनल कोआर्डिनेटर बनाने से मायावती को क्या फायदा?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में बहुजन समाजपार्टी ने सतीशचंद्र मिश्रा (Akash Anand) को आगे करके हर जिले में प्रबुद्ध सम्मेलन के माध्यम से ब्राह्मणों को साथ लाने की रणनीति मायावती की असफल रही है।

सबसे बड़ी बात उनका कोर वोटर, जो ये कहा जाता है कि वह बसपा से इतर कहीं जा ही नहीं जा सकता है, उसने 2022 के यूपी चुनाव में बहुत बड़ा झटका दिया है। दलित का गढ़ कहे जाने वाले आगरा में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली है।

वहीं, दलित बहुल सीटों पर मायावती को बहुत कम वोट मिले हैं। अब बसपा सुप्रीमो अपने कोर वोटर की तरफ पूरी तरह से लौटने का मन बना चुकी हैं और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेडर बनाकर कर दी है।

2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। साथ ही युवा चेहरे को आगे करके मायावती ने कहीं बड़ा दांव तो नहीं चल दिया। मायावती ने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं।

कभी अकेले दम पर यूपी में सत्ता हासिल करने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार एक सीट पर ही सिमट कर रह गई। पार्टी पिछले 10 साल के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।

इस दौरान कई दिग्गज नेताओं ने साथ छोड़ दिया। वोट प्रतिशत भी घटता रहा। हमेशा साथ देने वाले कोर वोटर्स ने भी दूसरी पार्टियों पर भरोसा करना शुरू कर दिया। ऐसे में पार्टी को नई ताकत देने के लिए बसपा प्रमुख मायावती ने बड़ा प्लान बनाया है।

उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया है। यही नहीं, कई बड़े रणनीतिक बदलाव की तरफ भी कदम बढ़ा दिए हैं।

मायावती ने क्या कहा?(Akash Anand)

बैठक में मायावती ने कहा, ‘ये वक्त हताश होने का नहीं, बल्कि एकजुट होकर संघर्ष करने का है। भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए मुसलमानों ने सपा का साथ दिया और वे विफल हुए।

अब मुसलमान भी यह समझ चुके हैं कि भाजपा को बसपा ही हरा सकती है। इसलिए मुसलमानों को अकेले छोड़ने की बजाय अब उन्हें साथ लेकर चलना है।’

    मायावती ने अपने भतीजे यानी आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया है। मतलब साफ है कि अब पार्टी को युवा हाथों में सौंपने की कवायद शुरू हो गई है। 

    तीन नए प्रभारी बनाए गए हैं जो सीधे आकाश आनंद को रिपोर्ट करेंगे। यह जिम्मेदारी मुनकाद अली, राजकुमार गौतम और डॉ. विजय प्रताप को दी गई है।

    बसपा की सभी इकाइयों को भंग कर दिया गया है। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्षों को छोड़कर बाकी सभी को पद से हटा दिया गया है।

    बसपा का साथ छोड़ने वाले शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को वापस पार्टी में शामिल कराया गया और आजमगढ़ से उन्हें लोकसभा उप-चुनाव का प्रत्याशी बना दिया।

    संगठन के सभी जिम्मेदार पदाधिकारियों से चुनाव हारने के कारणों की रिपोर्ट मांगी गई है।

2022 यूपी चुनाव में बसपा को मिले 13 फीसदी वोट(Akash Anand)

उत्तर प्रदेश में अगर दलित वोटरों की बात करें तो लगभग 22 फीसदी हैं। इतने फीसदी दलित वोटर होने का बावजूद भी बसपा को इस बार मात्र 13 फीसदी वोट मिला है, जोकि 1993 के बाद अबतक का सबसे कम वोट शेयर है।

मायावती ने भतीजे को आगे करके एक साफ संदेश दिया है कि वह ही दलित मसीहा हैं। आनंद को आगे कर उन्होंने युवा और दलित वोटरों को साधने की कोशिश की है।

बसपा 2007 में ब्राह्मण और मुस्लिमों को जोड़कर सत्ता पर काबिज जरूर हो गई, लेकिन पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। यही कारण रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर 10 फीसदी तक गिर गया।

80 लोकसभा सीटों पर पार्टी के एक भी सांसद जीत नहीं दर्ज कर सके, जबकि कुछ सीटों पर दलितों के वोट के सहारे सांसद जीत भी सकते थे।

वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन का फायदा बसपा को जरूर मिला और पार्टी 10 सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन इस बार भी बसपा का वोट शेयर नहीं बढ़ा।

एक बार फिर ब्राह्मणों और मुस्लिमों के सहार यूपी की सत्ता आने का सपना नहीं हुआ पूरा

मायावती ने एक बार फिर यूपी में ब्राह्मणों और मुस्लिमों को साथ लेकर सत्ता में आने का सपना देखा और राज्य के हर जिले में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन आयोजित कराया, लेकिन बसपा को इसका कोई फायदा नहीं हुआ.

जबकि उसका कोर वोटर दलित उससे छिटक गया। हाल ये हुआ कि दलितों का गढ़ आगरा में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। सुरक्षित सीटों पर बसपा को हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं उसको उम्मीद से भी कम वोट मिले।

मायावती की बसपा से दलित कहीं नहीं जाएंगे सोच पड़ी भारी(Akash Anand)

मायावती की दलितों को लेकर बसपा छोड़कर कहीं न जाने की सोच 2022 के यूपी चुनाव में भारी पड़ गई और पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ गया।

पार्टी के कई उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। मायावती को ये बात अब समझ में आ गई। इसी को देखते हुए उन्होंने भतीजे को आगे करके एक चाल चल दी है।

डुबती बसपा की नैया को आनंद नाम की पतवार क्या किनारे लगा पाएगी?

आकाश आनंद का राजनीतिक करियर यूपी विधानसभा चुनाव 2017 से शुरू हुआ। जब मायावती ने उन्हें सहारनपुर की एक रैली से लॉन्च किया।

2017 में मायावती-अखिलेश की संयुक्त रैलियों में आनंद मंच पर दिखे थे। अब सवाल उठता है कि क्या आकाश आनंद 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर दलित युवा वोटरों को लुभाने में सफल हो सकते हैं।

हालांकि, अभी तक आकाश आनंद ने अकेले कोई रैली यूपी में नहीं हुई है। अब जब मायावती ने उन्हें नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया है तो हो सकता है कि वो अब खुलकर राजनीति की पिच पर बैटिंग भी करें।

देखने वाली बात ये होगी कि क्या आकाश आनंद अपनी भाषण शैली से कितना विरोधी पार्टियों का मुंह बंद करा सकते हैं।

Akash Anand लंदन से MBA, युवा चेहरा, अब लोकसभा चुनाव में होगी परीक्षा

आकाश आनंद मायावती के भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। आकाश आनंद लंदन के एक कॉलेज से MBA की पढ़ाई की है। आनंद ने ही 2019 में बसपा को सोशल इंजीनियरिंग से जोड़ा था और ट्विटर, फेसबुक पर बसपा की मौजूदगी दिखने लगी।

बता दें कि मायावती 2019 के लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक आनंद को बनाया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी लगभग 2 साल हैं और मायावती ने अभी से भतीजे को आगे करके सियासी पिच पर खुलकर बैटिंग करने का हिंट दे दिया है।

बसपा नेता ने बताया कि 10 तरीके से पार्टी को रिवाइव किया जाएगा-



1. रणनीतिक स्तर पर बदलाव करके अब दलित-मुस्लिम गठजोड़ को नए सिरे से मजबूत बनाया जाएगा। ब्राह्मणों पर कम फोकस होगा। 


2. पार्टी में अब युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद खुद इस मोर्चे को संभालेंगे।  


3. पार्टी ने यूपी, पंजाब और उत्तराखंड में सर्वे करवाने का फैसला लिया है। इस सर्वे के जरिए बसपा से छिटके कोर वोटर्स से संपर्क होगा। उनसे सलाह लिए जाएंगे। 


4. मुद्दों को लेकर कार्यकर्ता-नेता सड़क पर उतरकर संघर्ष करेंगे।  


5. वरिष्ठ नेताओं और युवाओं में तालमेल बनाने के लिए मायावती खुद काम करेंगी। 


6. नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के लिए भी आकाश आनंद को जिम्मेदारी दी गई है। वह सीधे सभी से रूबरू होंगे। 


7. छात्र, कर्मचारी, वकीलों का अलग वर्ग बनेगा। 


8. युवाओं को सोशल मीडिया की कमान सौंपी जाएगी, ताकि पार्टी के खिलाफ चल रहे ट्रेंडिंग व खबरों को मजबूती से काउंटर किया जा सके। 


9. हर महीने जिले स्तर और दो महीने में जोन व मंडल स्तर पर बैठकें होंगी। इसकी रिपोर्ट सीधे नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को देनी होगी।  


10. मायावती और आकाश आनंद हर तीन से पांच महीने में सभी जिले और जोन की समीक्षा करेंगे।

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