इतिहासारो के ये प्रमाण सिद्ध करते हैं, कि हल्दीघाटी का युद्ध अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था

कुछ दिनों पहले ही खबर आई थी कि राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल सम्राट अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था।

इसपर गहनता से रिसर्च किया गया है, जिसमें सामने आया है कि अकबर हल्दीघाटी का युद्ध हार गया था, महाराणा प्रताप अपने बेहतरीन युद्ध कौशल से युद्ध जीत गये थे ।

इतिहासकार का दावा –

अब आपको बता दें कि ये मुद्दा इतिहासकार डॉ। चन्द्रशेखर शर्मा द्वारा लिखी गई एक किताब जिसका नाम ‘राष्ट्र रतन महाराणा प्रताप’ है में लिखे हुए शोधों को आधार बनाकर उठाया गया है।

ये किताब 2007 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब को दिल्ली के Aryavrat Sanskriti Sansthan द्वारा प्रकशित करवाया गया था। इतिहासकार डॉ। चन्द्रशेखर शर्मा ने अपने शोध और सबूतों के साथ महाराणा प्रताप को इस युद्ध का विजेता बताया है।

कौन हैं लेखक?

राष्ट्र रतन महाराणा प्रताप’ के लेखक डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा, जो उदयपुर के सरकारी महाविद्यालय ‘मीरा कन्या महाविद्यालय’ के छात्रों को पढ़ाते हैं।

और उन्होंने से शहर के जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी के लिए इस किताब पर काम किया है।

आगे पढिए – ये है वो वजहें, जिनके कारण डॉक्टर शर्मा महाराणा प्रताप को विजेता मानते हैं:

प्रताप ने अपने उद्देश्यों को पूरा किया था –

पूर्ण रूप से `उद्देश्य के आधार पर’ शर्मा कहते हैं कि प्रताप ने अकबर को हराया था।

प्रताप का मुख्य उद्देश्य अपनी जन्म भूमि की रक्षा करना था।

अगर अकबर ने युद्ध में विजय प्राप्त की होती तो वो प्रताप को गिरफ़्तार करता और मौत की सज़ा देकर उसके राज्य पर कब्ज़ा कर लेता। – इस बात के सबूत है कि अकबर अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया था।

क्या हुआ था युद्ध के बाद –

हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर सेनापति मान सिंह व आसिफ खां से हार को लेकर नाराज था और इसी कारण इस दोनों को छह महीने तक दरबार में न आने की सजा दी थी।

अगर मुगल सेना जीतती, तो अकबर अपने सबसे बड़े विरोधी प्रताप को हराने वालों को पुरस्कृत करते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

इससे ये बात साफ़ होती है कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध को जीता था।

जमीनों के ताम्र पत्र के रूप में जारी हुए पट्टे –

डॉ. शर्मा ने अपने शोध में प्रताप की विजय को दर्शाते ताम्र पत्रों से जुडे़ प्रमाण जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए गए हैं।

शर्मा कहते हैं कि उनके अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे।

महाराणा प्रताप के हस्ताक्षर –

इन पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे।

उस समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को ही होता था। अगर प्रताप की जीत न हुई होती, तो वो उन ताम्र पत्रों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते थे।

किताब में किया शामिल –

शर्मा ने इन ताम्र पत्रों को तत्कालीन महान राजपूत परिवारों और गांवों के किसानों से इकठ्ठा कर अपनी किताब में भी छापा है।

इसके साथ ही उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला कि हल्दी घाटी के युद्ध के बाद ही प्रताप की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं की गई थी।

भीलवाड़ाऔर मेवाड़ क्षेत्र पर महाराणा प्रताप का नियंत्रण –

वो कहते हैं कि भीलवाड़ा मैदानी इलाकों के साथ-साथ मेवाड़ के महत्वपूर्ण पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रताप के प्रभावी नियंत्रण के निशान आज भी मौजूद हैं। – 1834 में जिस ज़मीन पर महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधी का नवीनीकरण किया गया था,

वास्तव में वो ज़मीन समाधि बनाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के युद्ध के बाद प्रताप द्वारा ही आवंटित की गई थी।

इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी मेवाड़ और उसके आसपास के इलाकों पर महाराणा प्रताप का ही नियंत्रण था.

प्रताप का गुरिल्ला युद्ध –

महाराणा प्रताप पहले ऐसे भारतीय राजा थे !

जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध भी लड़ा था और बहुत व्यवस्थित तरीके से इस युक्ति का उपयोग किया।

जिसका परिणाम यह हुआ था कि मुगल घुटने टेकने पर मजबूर हो गए थे। एक ऐसा भी समय था, जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबर के कब्जे में था, लेकिन महाराणा अपना मेवाड़ बचाने के लिए अकबर से 12 साल तक लड़ते रहे।

विजयी रहे प्रताप –

अकबर ने उन्हें हराने के लिए हर हथकंडा अपनाया, लेकिन महाराणा आखिर तक अविजित ही रहे। इसके साथ ही शर्मा कहते हैं कि युद्ध की ये तकनीक न ही प्रदेश शासित है और न ही समयबद्ध है।

लोगों का मानना है कि यह युद्ध केवल चार घंटे ही चला था, लेकिन यह सत्य नहीं है। जबकि यह लड़ाई सूर्योदय से सूर्यास्त तक चली थी।

युद्ध के दो अध्याय –

इसको तो पुरातात्विक सबूत के अलावा भारतीय और फारसी मूल के साहित्यिक कृतियों में भी उद्धृत किया गया है। इस युद्ध का पहला अध्याय प्रताप द्वारा मुगलों पर आक्रमण कर हल्दी घाटी में शुरू हुआ था !

जहां उन्होंने मुगलों को भागने मजबूर कर दिया था। जबकि दूसरा अध्याय हल्दीघाटी से करीब 7 किलोमीटर दूर Raktalai में हुआ था।

क्या है स्थानीय लोगों की राय –

शर्मा कहते हैं कि वो खुद को एक गौरवान्वित राजस्थानी मानते हैं और वहां की महाराणा प्रताप के साहस और गौरव का गुणगान करने वाली लोककथाओं को बहुत पसदं करते हैं।

वो बताते हैं है कि वहां के स्थानीय लोग हमेशा से यही मानते आये हैं कि उनके राजा प्रताप ने अकबर को हराया था, उनके लिए इसका कोई मतलब नहीं है कि थास में क्या लिखा है और क्या नहीं।

उनकी नज़र में प्रताप ही उनके हीरो हैं।

यही  पुर्णतः  सत्य है  ।

अकबर को मिला सिर्फ एक हाथी –

कहा जाता है कि इस ऐतिहासिक युद्ध में अकबर केवल बेशकीमती हाथी, जिसका नाम राम प्रसाद था  !

पर ही अपना आधिपत्य स्थापित कर पाया था। और उस वक़्त अकबर की सेना उस हाथी को गांव-गांव ले जाकर ढिंढोरा पीट रही थी कि उन्होंने प्रताप को हरा दिया है। लेकिन किसी ने उनकी इस बात पर विश्वास नहीं किया।

ताम्रपत्रों का योगदान –

इन लोककथाओं के ज़रिये ये लोग अकबर का मज़ाक उड़ाते हैं कि उसने झूठ-मूठ ही अपनी विजय गाथा बनाई है। लेकिन वहीं शर्मा का कहना ही कि वो किसी भी तरह की विचारधारा को आगे बढाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। ‘मैंने किसी भी परिकल्पना के बिना अपना शोध किया, वो बताते हैं कि ‘ताम्र पत्रों’ ने उनकी खोज में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

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