जेपी नड्डा ने कहा भाजपा का मतलब भगवा नहीं –

JP Nadda said BJP does not mean saffron

जेपी नड्डा कह रहे हैं भाजपा का मतलब भगवा नहीं होता। वे इतने आत्मविश्वास से बोल रहे थे, जैसे पार्टी उन्होंने ही खड़ी की हो। जैसे उनके पास अपना इतना जनाधार हो कि वे कहीं की भी सरकार बना और बिगाड़ सकें। हालांकि सच्चाई यह है कि अपने दम पर किसी पंचायत की प्रधानी लड़ जांय तो नीचे से फर्स्ट आएंगे। आज तक कभी हिम्मत नहीं हुई कि एमपी एमएलए का चुनाव लड़ लें। पर यह बताने टप से आ गए कि भाजपा का मतलब भगवा नहीं होता…

    1980 में विपक्ष के सबसे चमकदार और प्रभावशाली चेहरों के साथ बनी भाजपा तब तक दो सीटों पर अटकी रही, जबतक कि भगवा ध्वज तले आडवाणी जी दिग्विजय पर नहीं निकले। जो थोड़े से पुराने लोग हैं वे जानते हैं कि गठबंधन निभाने की मजबूरी न होती तो सौम्य अटल की जगह स्पष्ट आडवाणी भारत के प्रधानमंत्री बने होते। वह भगवा से विचलन ही था कि 2009 में आडवाणी पराजित हुए, और भगवा के प्रति निष्ठा ही थी जो 2014 में मोदी सफल हुए।

उत्तर प्रदेश में योगी हों, सुदूर आसाम के शर्मा या मध्यप्रदेश के चौहान! भाजपा के पास अपने दम पर चुनाव लड़ने और जीतने वाले जो भी क्षत्रप हैं, वे केवल और केवल भगवा के कारण हैं।

कुछ लोग सब समझ कर भी नहीं समझ पाते कि भारत में विकाश चुनाव का मुख्य मुद्दा कभी नहीं होता। यदि होता तो अन्नपूर्णा, अंत्योदय, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और ऐसी ही असंख्य सफल योजनाओं के बाद भी 2004 में अटल जी का फील गुड फुस्स नहीं होता। 2004 में भाजपा उसी “सबका विकास” वाले दावे के साथ उतरी थी, और एक झटके में दस वर्षों के लिए उतर गयी। अगर बात पुरानी लग रही हो, तो —

JP Nadda said BJP does not mean saffron green too

नड्डा साहब किसी एक राज्य का चुनाव बिना “जय श्रीराम” के नारे के लड़ कर देख लें। सबका विकास हर बूथ पर न हार जाय तो कहिएगा…

भाजपा के पास जो कुछ भी है वह भगवा के कारण है। भविष्य में भी जो मिलेगा वह भगवा के कारण ही मिलेगा। दूसरे रङ्ग भाजपा और उसके नेताओं का कितना आदर-सम्मान करते हैं, यह जगत जानता है। जिस दिन भगवा से दूरी हुई, भाजपा कांग्रेस हो जाएगी।

दिल्ली में शाह जी चुप्पी ने जो “सबका विकास” किया है, उसका असर भी दिख जाएगा अगले एमसीडी चुनावों में। देखते रहिये…

भाजपा में भी कुछ महान आत्माएं हैं जिन्हें भगवा पसन्द नहीं। वे भगवा शब्द सुन कर ही सफाई देने लगते हैं। ऐसे मूर्खों ने ही सब बंटाधार किया हुआ है।

दरअसल नड्डा साहब को उनकी क्षमता से अधिक प्राप्त हो गया है। अयोग्य व्यक्ति को जब स्थाई अड्डा मिल जाता है तो वह नड्डा हो जाता है। उन्हें चुनाव तो लड़ना नहीं है जो सच से सामना हो, बस कुर्सी मिल गयी है और बयान झाड़ते रहना है। मैं समझ नहीं पाता कि पार्टी ऐसे महान लोगों को किस आधार पर इतना बड़ा पद दे देती है…

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