सन् 1999 कारगिल युद्ध Colonel- M.B. Ravindranath
सन् 1999 कारगिल युद्धतोलोलिंग पहाड़ी पर जंग जारी थी, तोलोलिंग की वो पथरीली पहाड़ी पूरे युद्ध के दौरान हुई कैजुल्टियों में से लगभग आधी कैजुल्टियों के लिए जिम्मेदार थी ।
कारगिल की सबसे पेचीदा, मुश्किल, और खूनी जंग यहीं लड़ी गई थी । Artillery support के बगैर ही ।18 ग्रिनेडियर और 16 ग्रिनेडियर बटालियनो ने बेहिसाब नुकसान झेला था ।महीने भर के संघर्ष और खून बहाने के बाद भी तोलोलिंग भारत की पहुँच से दूर थी ।
जनरल वेद प्रकाश मलिक के लिए ये एक चुनौती थी, क्योंकि भारतीय आक्रमण की धार यहाँ आकर कुंद पड जाती थी । ग्रिनेडियर्स के लगातार धावे केवल उनकी कैजुल्टियों का फिगर बढ़ा रहे थे, मजबूरन एक नई और ताजा दम बटालियन को ये टास्क सौंपा गया था कुपवाड़ा से एक नई बटालियन 2nd राजपूताना राईफल्स को 24 घंटे के अंदर गुमरी में रिपोर्ट करने को कहा गया, केवल एक दिन के Acclimatization _(मौसम और टैरेन के अनुसार ढलने की एक मिलिट्री टर्म) के बाद ही बटालियन को लाँच करने प्लानिंग उनके कमांडिंग आफिसर Colonel- M.B. Ravindranath ने की थी ।
कर्नल रविंद्रनाथ ने बटालियन के चुनिंदा 80 ऐथेलीटों और आफिसर्स की चार टीमें बनाकर उन्हे युद्ध के लिए तैयार किया, वास्तव में ये एक आत्मघाती मिशन था ।
रात को आठ बजे फाईनल असाल्ट से पहले Pep-talk में कर्नल रवींद्रनाथ ने अपने 80 सूरमाओं से कहा कि …..”मैं तुम्हारा CO हूँ और तुम्हीं मेरा परिवार हो, तुमने बटालियन के लिए खेल के मैदानों में मैडल ही मैडल जीते हैं. तुमने जो भी माँगा मैंने दिया ।
“”क्या मैं तुमसे अपने लिए एक चीज माँग सकता हूँ ???” जवानों के आग्रह करने पर रवींद्रनाथ ने लगभग चीखकर कहा “तो मेरे बच्चों ! आज मुझे तोलोलिंग दे दो !!”रविन्द्रनाथ ने असाल्ट टीम को इतना ज्यादा Emotionally charged कर दिया कि सूबेदार भंवर लाल भाखर पेप टाॅक के बीच में ही बोल पड़ा, सर ! आप सुबह तोलोलिंग टाॅप पर आना, वही मिलेंगें ।
फिर जो कुछ हुआ वो भारत के युद्ध इतिहास का सुनहरा पन्ना है, घमासान और खूनी संघर्ष के बाद सेकेंड बटालियन द राजपूताना राईफल्स ने ऊँची चोटी पर बैठे 70 से ज्यादा पाकिस्तानियों के हलक में हाथ डालकर “विजयश्री” हासिल तो की. मगर बहुत बडी कीमत चुका कर ।
चार आफिसर्स, 05 JCO’s और 47 जवानों को तोलोलिंग की पथरीली ढलानों ने लील लिया था, और लगभग इतने ही गंभीर रूप से जख्मी थे ।बलिदान की इस निर्णायक घड़ी में महानायक बनकर उभरे थे!कर्नल रवींद्रनाथ, जिन्होंने अपनी बटालियन को ऐसे मोड़ पर कमांड और लीड किया, बड़ी कीमत चुकाकर देश को वो यादगार पल दिया, जिसे Turning point of the kargil war कहा जाता है ।
केवल इसी लड़ाई ने कारगिल युद्ध का पासा भारत के पक्ष में पलट दिया था, मगर कीमत भी नाकाबिले बर्दाश्त थी ।मेजर आचार्य, मेजर विवेक गुप्ता, कैप्टन नेमो, कैप्टन विजयंत थापर, सूबेदार भँवरलाल भाखर, सूबेदार सुमेर सिंह, सूबेदार जसवंत, हवलदार यशवीर तोमर, लांस नायक बचन सिंह उनमे से थे, जो सुबह का सूरज नहीं देख पाये ।
नायक दिगेन्द्र कुमार ने “वार ट्राॅफी” के तौर पर पाकिस्तानी सेना के मेजर अनवर खान का सिर काटकर रख लिया । मेजर विवेक गुप्ता और नायक दिगेन्द्र कुमार महावीर चक्र से अलंकृत किये गये, जबकि कर्नल रवींद्र, हवलदार यशवीर, सूबेदार सुमेर सिंह को वीर चक्र से अलंकृत गया ।
युद्ध की सफलता का सेहरा, कर्नल रवींद्रनाथ के सिर बँधा जिसके वो हकदार भी थे ।लडाई के बाद कर्नल रिटायर हो गये, मगर तोलोलिंग की चोटियों पर शहीद हुए जवानों के परिवारजनो के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया ।
प्रत्येक शहीद के बच्चों और विधवाओ से वो नियमित संपर्क में थे । उनके बच्चो की स्कूलिंग, विधनाओ की पेंशन, बूढ़े बुजुर्गो की चिकित्सा के सारे मामले उन्होंने खुद संभाले । मिलिट्री स्कूल चायल, धौलपुर और अजमेर में उन्होंने शहीदो के बच्चों की बेहतर पढाई और व्यक्तित्व निर्माण का जिम्मा उठाया ।
तोलोलिंग पर शहीद हुए LMG गनर लांस नायक बचन सिंह के पुत्र हितेश कुमार ने हाल ही में जब इंडियन मिलिट्री ऐकेडेमी देहरादून से अपने पिता की बटालियन में अफसर के तौर पर कमीशन लिया, तो उनकी माता जी श्रीमति कामेश बाला मुक्त कंठ से बेटे के कमीशन का श्रेय कर्नल साहब को दे रही थी ।
उन्होने शहीद हुए सैनिको के बच्चों को कभी अकेला नही छोड़ा । नियमित रूप से उनकी समस्याऐं सुनकर समाधान के लिए सदैव उपलब्द रहे ।सैनिक स्कूल बीजापुर के इस पूर्व छात्र और Stalwart officer के तौर पर फेमस, कमांडर 2018 में दुनियाँ को अलविदा कह दिया, Military annals में बेहद योग्य कमांडरो के तौर पर प्रसिद्ध एक युद्धनायक दुनियाँ से रुखसत हो गया चुपचाप ।