अछूत कब और कैसे :Dr Tribhuwan Singh

भाग 1

फ्रांसिस हैमिल्टन बुचनान ने 1800 में दक्षिण भारत का सर्वे किया। वहां के देशी राजाओं के रक्षा सेना में अधिकतर उन्ही जातियों के लोग थे, जिनको आज वे दलित बोल रहे हैं।

 1807 में बुचनन ने 1500 पेज में तीन वॉल्यूम की पुस्तक लिखी –

“Journey from Madras through the countries of Mysore, Canada and Malabar”.

 इस पुस्तक को उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर्स को समर्पित किया।

डेढ़ हजार पेज में उसने एक शब्द भी अछूतों के बारे में नही लिखा, जिनको बाबा साहेब और उनके अंग्रेज मालिकान 3000 साल से उतपन्न हुवा बताते हैं। ऐसा कैसे संभव है?

क्या वह अंधा था ?

या वे भारतीय शिक्षित लोग अंधे हैं जिनको मैकाले कहता था -” एलियंस और मूर्ख पिछलग्गू”? अवश्य ही मूर्ख पिछलग्गू ही अंधे हैं।

1807 में ब्रिटिश दस्यु देश को लूट रहे थे। ये पुस्तक भी भारत के आर्थिक समृद्धि के तंत्र – कृषि शिल्प वाणिज्य की रेकी करने के लिए लिखी गयी थी।

परंतु  भारत अभी भी विश्व की 20% जीडीपी का निर्माता था, और विश्व का सर्वाधिक धनी और वैभवशाली देश।

अतः अभी भारतीय समाज के बारे में फेक न्यूज़ लिखने की अभी कोई आवश्यकता महसूस नही हुई थी।

अभी अछूतों का जन्म भी नहीं हुवा था समाज मे। क्योंकि भारतीय अभी बेरोजगार भी नही हुए थे पूर्णतः। शुरुवात लेकिन हो चुकी थी।

मजे की बात है कि बुचनान लिखता है -” होसो बेट्टा के निवासी, और तुलवा में रहने वाले अनेक कंकनी कंकन के निवासियों के वंशज हैं।

वे कहते हैं, कि अपने देश गोवा से वे धर्म परिवर्तन से बचने के लिए भागे। पुर्तगाल के राजा ने समस्त देशी गोवनियों के धर्म परिवर्तन का आदेश दिया।

वे बताते है, कि गौवा का वाइसराय बहुत विनम्र था, उसने सभी देशी हिन्दुओ को 15 दिन का समय दिया कि आप अपनी चल संपति को लेकर देश छोड़कर जा सकते हैं।

अतएव, सभी धनी लोग, ब्राम्हण और शूद्र, अपनी जिन संपत्तियों को बेंच सकते थे, उनको बेंचकर तलवा चले आये, और अब वाणिज्य के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं।

ब्राम्हण और शूद्र दोनो अपने देशी नाम कंकनी के नाम से जाने जाते हैं।

वे सब सम्पन्न दशा में हैं; और मैने गुजरते हुए एक दो शादियों में उनको देखा है,वे बहुत शानदार वेशभूषा में थे, और उनकी लडकिया बहुत सुंदर थी।

गरीब कंकनी जो, गौवा से नही भाग सकतें थे, वे सब ईसाइयत में धर्म परिवर्तीति कर दिए गए”।

 इसी पुस्तक के Vol iiii P.20- 21 से।

ध्यान दीजिये : #धनी_ब्राम्हण_और_शूद्र

#नेक्स्ट_पोस्ट

भाग_2 :

फ्रांसिस हैमिलटन बुचनान के पिछले पोस्ट में दिए गए उद्धरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि 1800 के आस पास यदि ब्राम्हण और अन्य वर्ण के लोग धनी थे तो शूद्र भी धनी था।

अभी तक वह अछूत भी नही बना था।

अछूत का कोई सिद्धांत भारतीय धर्म ग्रंथो में है भी नही।

शौच अर्थात सैनिटेशन और हाइजिन का सिद्धांत अवश्य है। मुसलमान अपने खान पान के कारण हिन्दू समाज में अछूत था। लेकिन खान पान के कारण।

लेकिन जैसे जैसे भारत के कृषि शिल्प वाणिज्य का विनाश किया जाने लगा, भारत का बहुत बड़ा वर्ग जो हजारों वर्षों से कृषि शिल्प वाणिज्य आधारित भारतीय बैभव का आधार था, उसका बेरोजगार होना शुरू हो गया।

वामपंथियों के आदि गुरु श्री कार्ल मार्क्स 1853 के न्यूयोर्क ट्रिब्यून में छपे ( आज भी गूगल पर है).

लेख में लिखता है कि “1818 में ढाका नामक कस्बे में 150,000  शिल्पकार थे, जिनकी संख्या 1836 में घटकर मात्र 20,000 बची। और वह भारत जो सदियों से पूरे विश्व को वस्त्र निर्यात करता था, वह कपड़ो का आयातक बन गया”।

आखिर किसी ने पूंछा नहीं आज तक कि साहब ढाका के वे 130,000 शिल्पकार कहाँ गए, जो अभी मात्र दो दशक पूर्व तक शिल्पकारी से जीवन यापन करते थे?

यही हाल कृषि का  किया गया।  उन्होंने कृषि उत्पादों पर बहुत अधिक दर से  टैक्स वसूलकर कृषि और कृषकों का नाश किया। भारत में कृषक ही वाणिज्य का उत्पादक भी था। वाणिज्य नष्ट करने के कारण यह वर्ग कृषि पर एक नए बोझ की तरह उपजा।

। 1930 में The Case For India में विल दुरान्त लिखता है -” वे किसान यदि सौभाग्यशाली हुए तो अपने खेतों को छोड़कर दिल्ली जैसे शहरों की ओर जाते थे, जहां यदि प्रतियोगिता कम हुई तो उनको गोरों का मैला ढोने का काम मिल जाता था। यदि गुलाम इतने सस्ते हों तो शौचालय कौन बनवावे”।

कार्ल मार्क्स के द्वारा ब्रिटिश रिकार्ड्स से ढाका के शिल्पियों के बेरोजगार होने को यदि एक पायलट प्रोजेक्ट बनाया जाय तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कितने भारतीय ब्रिटिश दस्युवों के अत्याचार और लूट के कारण बेरोजगार हुए होंगे आने वाले समय मे।

 पॉल बैरोच, अंगुस मैडिसन, एस गुरुमूर्ति, शशि थरूर के अनेको लेख और वीडियो आपको मिल जाएंगे जो इस लूट का वर्णन करते हैं।

अभी उषा पटनायक नामक एक लेखिका ने लिखा कि ब्रिटिश भारत से 45 बिलियन पौंड लूटकर ले गए। जो आज ब्रिटिश के 17 साल के जीडीपी के बराबर होगा।

1850 तक संक्रामक बीमारियों और महामारियों का जाल भारत मे नही फैला था। परंतु मात्र 1850 से 1900 के बीच भारत मे संक्रामक रोग और भुखमरी से मरने वाले भारतीयों की संख्या 3 से 5 करोड़ है।

भाग_3:

आज संक्रामक रोग से 100 बच्चे मर जाते हैं तो वह अंतराष्ट्रीय खबर बनती है। टी वी की उद्घोषिका सुझाव देने लगती है कि साफ पानी पीजिए। सफाई से रहिये।

उस समय सरकार किसकी थी? जिम्मेदारी किसकी थी, इन बेरोजगार और भुखमरी से जूझ रहे भारतीयों के प्राणों की रक्षा करने की ?

किसी ने आज तक पूंछा उनसे?

नही पूंछा।

इन संक्रामक बीमारियों से बचने का उपाय हिन्दू समाज ने खोजा – सोशल क्वारंटाइन ( Social Quarantine) जो कालांतर में एक प्रथा के रूप में प्रचलित हो गयी।

 जिसे दस्यु ईसाइयों ने #फेक_न्यूज़_लिटरेचर के माध्यम से उसको हिन्दू धर्म से जोड़ा। उसका कारण बताया कि शम्बूक और एकलव्य है।

यदि अछूतपन हिन्दू धर्म का अंग है तो संस्कृत ग्रंथों में इसका वर्णन भी होगा।

दिखाइए कौन सा ग्रन्थ बोलता है अछूतपन के बारे में?

शौच का वर्णन हर ग्रन्थ में हैं।

यह एक बुद्धिमान समाज द्वारा संक्रमक रोगों के प्रसार से बचने की विधा थी। यह प्रश्न खड़ा हो सकता है कि यदि यह सोशल क्वारंटाइन था तो लिमिटेड समय के लिए क्यों नही था?

और भी प्रश्न हो सकते हैं।

आप पूँछिये तो।

आपने अंग्रेजो द्वारा भारत के बारे मे रचित अफवाहजनक गर्न्थो पर कभी प्रश्न ही नहीं खड़ा किया।

आखिर लुटेरों पर इतना विश्वास होने का कोई कारण?

इसको धर्म परिवर्तन और हिंदुत्व को नीचा दिखाने हेतु ब्रिटिश दस्युवो ने #Untouchability का नाम दिया। और उसको फेक न्यूज़ से जोड़कर यह बताया कि यह हजारो साल पुरानी परंपरा है।

लेकिन भारत के पढ़े लिखे लोग वही निकले जो मैकाले उनको बनाना चाहता था – एलियंस एंड स्टुपिड प्रोटागोनिस्ट्स।

वरना सीधी साधी लूट और राजनैतिक षड्यंत्र के परिणामो से वह क्या अनभिज्ञ रहते?

नीचे प्रमाण है कि किस तरह पिछले 100 वर्षों में इन्ही फेक न्यूज़ को आधार बनाकर वे हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करने में सफल रहे।

यह सब ईसाइयत में धर्म परिवर्तन हेतु तैयार किया गया एक फेक न्यूज़ लिटरेचर के अतिरिक्त कुछ नही हैं।

एक हजार से गुलाम रहे हिन्दू समाज का कारण 5000 साल पुराने लिटरेचर से खोजना यही सिद्ध करता है कि मैकाले अपने उद्देश्य में सफल रहा।

उसने अपने पिता को लिखे पत्र में लिखा था कि -“यह शिक्षा एलियंस और मूर्ख पिछलग्गू तैयार करने के लिए बनाई गई है”।

यदि ऐसा न होता तो पूरी की पूरी संविधान सभा, जो कि पढ़े लिखे विद्वानो से भरी हुई थी, उसमे एक भी व्यक्ति ने न निकलता जो दस्यु ईसाइयों द्वारा बनाये गए संविधान में षड्यंत्र की बू न सूँघ लेता।

और जाति के आधार पर हिन्दुओ को बांटने का षड्यंत्र विफल हो गया होता?

कल ही योगी सरकार ने 17 नई जातियों को अनुशूचित घोसित किया है। क्या कोई उनसे पूँछेगा कि आप क्यो एलियंस और मूर्ख पिछलग्गू की भांति व्यवहार कर रहे हैं ?

नौकरियां कितनी दे सकते हो तुम? एक से डेढ़ प्रतिशत लोगों को।

लेकिन उसके द्वारा तुम 100% हिन्दुओ को उसी जाल में डाल रहे हो जिसका फंदा दस्यु ईसाइयों ने हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन हेतु बनाया था।

प्रमाण संलग्न हैं।

अछूत_कब_और_कैसे :- #चतुर्थ_भाग

अछूत, शौच और सैनिटेशन में फर्क नहीं जानते अधिकतर लोग, जानिए जो नहीं बताया गया

अछूत शब्द भारत के किसी भी ग्रंथ में वर्णित नही है। यह ठीक उसी तरह से रिलीजन और कास्ट की तरह उनका हिंदीबाजी से उपजा शब्द है।

रिलिजन – धर्म,

कास्ट – जाति ( वर्ण को गायब कर दिया गया),

Untouchable – अछूत

भारतीय ग्रंथ शौच की बात करते हैं। जिसे नग्रेजी में सैनिटेशन और हाइजीन कहते हैं।  और जो अशुचिता पूर्ण जीवन जिये – अपनी संस्कृति के कारण या मजबूरी वश उससे संपर्क में एक निश्चित दूरी बनायी जाती थी।

1030 AD में अलुबेरणी लिखता है कि – हिन्दू मुसलमान को अछूत मानता था – उनकी रहन सहन और खान पान के कारण। आपने कुछ दशक पूर्व इसको देखा होगा। लेकिन उन्होंने इस अछूतपन को कभी मुद्दा नही बनाया।

लेकिन अशुचिता पूर्ण जीवन जीने के लिए विवश किये गए और संक्रामक रोगों के शिकार होने वाले भारतीयों के हत्या के लिए जिम्मेदार ब्रिटिश दस्युवों, ने अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिए इसको हिन्दू धर्म का परिणाम बताया तो मूर्ख एलियंस और मूर्ख पिछलग्गुओं को यह बात सहज हजम हो गयी।

उन मूर्ख पिछलग्गुओं में मात्र पेरियार और अम्बेडकर ही नही थे, भारत का संविधान बनाने वाले ब्रिटिश एडुकेटेड इंडियन बररिस्टर्स भी उनके जाल में फंसे हुए मूर्ख पिछलग्गू थे, जिनके सच और अफवाह का अंतर करने की मेधा नहीं थी।

मोदी ने स्वच्छता अभियान चला रखा है। भारत को लूटने के पश्चात ब्रिटिश दस्युवों ने एक ऐसी स्थित पैदा किया कि करोड़ो लोग बेरोजगार हो गए।

उनके लिए अन्न का एक दाना भी अलभ्य हो गया। वे कुपोषण का भीषण रूप से शिकार होने के लिये विवश किये गए।  साधारण फ्लू जैसे वायरल इन्फेक्शन्स से करोड़ो लोग मौत के शिकार होने लगे।

  1918 में 12.5 करोड़ लोग फ्लू से प्रभावित हुए, जिनमे 1.25 करोड़ लोग मौत के मुहं में समा गए।

1850 से 1900 के बीच चार से पांच करोड़ भारतीयों की इन संक्रामक बीमारियों से मृत्यु हो गयी।

अपने इन अत्यचारों और अपराधों को नग्रेज़ों ने विश्व को नही बताया। और यह दुष्प्रचारित किया कि हिन्दू अपने अंध विश्वास के कारण गरीब हैं और इन बीमारियों से मर रहे हैं।

ऐसे हुई ये प्रथा शुरू

हिंदुओं ने इन बीमारियों से बचने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका इस्तेमाल किया – जिसको नग्रेजी में Quarantine कहते हैं। जो बाद में एक प्रथा बन गयी। उनको न छूना है न छुआना है जो इन बीमारियों से पीड़ित हैं।

कोई भी सामाजिक प्रथा प्रायः ऐसे ही शुरू होती है।

आज हमारे देश मे सब पेंट शर्ट कोट पेंट और टाई पहनते हैं। बाबा साहेब तो कभी किसी देशी वस्त्र में दिखे ही नही। लेकिन भारत जैसे गरम देश से धीरे धीरे कुर्ता धोती गायब हो गयी। क्यों भाई ? मानसिक गुलामी के कारण।

दक्षिण भारत गुलामी का हुआ कम शिकार

दक्षिण भारत इस गुलामी से बहुत कम प्रभावित हुआ है। लुंगी वे आज भी पहनते हैं जो धोती का लघु स्वरूप है।

1850 के पूर्व भारत में कभी भी महामारी नही आई। आयी भी तो इस भयानक स्वरूप में व्यापक नही हुई थी।

1500 के आस पास यह यूरोप की बीमारी थी। जिससे निबटने के लिए उन्होंने विश्व के गैर ईसाई देशों के जर जोरू जमीन को लूटने की योजना बनाई, जिसमे वे सफल रहे।

लेकिन अपने अपराधों पर पर्दा डालने और ईसाइयत के प्रचार के लिए भूमि तैयार करने के लिए फेक न्यूज़ तैयार किये, जिसको लोकल स्तर पर प्रामाणिक बनाने हेतु फुले , पेरियार और अम्बेडकर जैसे लोगों को राजाश्रय प्रदान किया, जिन्होंने उन ईसाई दस्युवो के कुकृत्यों के कारण भारत मे हुए समाजिक परिणामों को हिन्दू धर्म को दोषी ठहराते हुए उन दस्यओं को भगवान घोषित कर दिया।

©Dr. Tribhuwan Singh

Disclaimer लेखक डॉ त्रिभुवन सिंह के निजी विचार हम सहमत अथवा असहमत नहीं.

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