शिवपाल (Shivpal Singh Yadav)  की बीजेपी में जाने की  गुंजाइश दिख रही है

शिवपाल (Shivpal Singh Yadav) की बीजेपी में जाने की गुंजाइश दिख रही है

अब लगभग-लगभग यह बात तय दिखने लगी है कि देश के सबसे ताकतवर समझे जाने वाले यूपी के यादव परिवार से एक और शख्स की देर-सवेर बीजेपी में एंट्री होने वाली है।

यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) हैं। जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वह उस नींव का पत्थर हैं, जिसके ऊपर मुलायम सिंह यादव की विशाल शख्सियत खड़ी है।

शिवपाल (Shivpal Singh Yadav)  की बीजेपी में जाने की  गुंजाइश बनती दिख रही है

शिवपाल की बीजेपी में जाने की जो गुंजाइश बनती दिख रही है, वह उतना नहीं चौकाती, जितना यह बात चौंकाने वाली है कि उन्हें समाजवादी पार्टी में बनाए रखने में अखिलेश यादव कोई दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहे हैं।

2022 के विधानसभा चुनाव के वक्त जब अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी का ‘सिंबल’ देकर चुनाव लड़ाया था, तब ऐसा लगने लगा था कि यादव परिवार में एका हो गया है। लेकिन नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को पार्टी विधायकों की बैठक में नहीं बुलाया, कहा वह तो सहयोगी संगठन हैं। जब सहयोगी संगठन की बैठक होगी, उसमें बुलाएंगे।

सहयोगी संगठनों की जिस दिन बैठक थी, उसमें उन्हें सूचना देने में काफी देर की गई, जिसकी वजह से वह बैठक में शामिल नहीं हुए।

जिस दिन शिवपाल यादव योगी से मिलने के लिए पहुंचे तो समाजवादी पार्टी कार्यालय से इसकी जानकारी देने के लिए अखिलेश यादव को कॉल की गई तो बताया जाता है कि उनका जवाब था ‘उनको तो वहीं जाना ही था।’

मुख्यमंत्री पद के दावेदार शिवपाल सिंह यादव(Shivpal Singh Yadav)  भी थे

2012 में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार शिवपाल सिंह यादव भी थे। लेकिन जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने पर अपनी रजामंदी दे दी तो यादव परिवार में यहीं से बिखराव की शुरुआत हुई।

शिवपाल विधायकों की उस बैठक में शामिल होने को राजी नहीं हो रहे थे, जिसमें अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री चुना जाना था। बाद में मुलायम सिंह यादव के दबाव में वह उस बैठक में शामिल हुए और उन्हीं को अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के चुने जाने का प्रस्ताव करना पड़ा।

अपमान को अखिलेश भूल नहीं पा रहे हैं

नाम न छापने की शर्त पर अखिलेश यादव के एक करीबी कहते हैं, ‘अखिलेश भैया को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए चाचा शिवपाल यादव की तरफ से जिस तरह की कोशिशें की गईं, उन्हें कदम दर कदम अपमानित करने के लिए जिस तरह से कदम उठाए, उस अपमान को अखिलेश भैया भूल नहीं पा रहे हैं।

‘ यह सही है कि देश की अकेली यह ऐसी मिसाल रही थी, जिसमें सरकार चला रहे एक मुख्यमंत्री (अखिलेश यादव) को अचानक उनकी पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया गया हो।

अध्यक्ष के रूप में उस वक्त मुलायम सिंह यादव ने जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित करने का ऐलान किया था, वह शिवपाल यादव ने आयोजित की थी।

अमर सिंह भी उस वक्त शिवपाल यादव को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में लगे थे। यह अलग बात है कि अखिलेश यादव अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए थे।

पार्टी से निकाले जाने की घोषणा के बाद भी बहुमत में पार्टी के विधायक उनके साथ खड़े थे। बाद में चुनाव आयोग ने भी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी को ही असली समाजवादी पार्टी करार दिया था।

उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिवपाल सिंह यादव के साथ जो भी विधायक थे, उनमें से किसी एक को भी अखिलेश यादव ने 2022 में टिकट नहीं दिया।

मुख्यमंत्री पद के दावेदार शिवपाल सिंह यादव(Shivpal Singh Yadav)  भी थे

साथ रखने में दिलचस्पी क्यों नहीं?

अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल सिंह यादव को साथ रखने में फायदा कम दिख रहा है और नुकसान की उम्मीद ज्यादा है।

2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक बात तो साबित हो गई है कि समाजवादी पार्टी को जो बेस वोट मुलायम सिंह यादव के जमाने से चला आ रहा है (मुस्लिम+यादव), उसने अखिलेश यादव को अपना नेता मान लिया है।

अखिलेश यादव को M+Y वोट के लिए शिवपाल यादव की कोई जरूरत नहीं दिखती।

शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav)  समानांतर ‘पावर सेंटर’ बन गए थे

दूसरी बात, पार्टी पर उनका पूरी तरह से नियंत्रण हो चुका है, ऐसे में वह अब शिवपाल यादव के लिए फिर से स्पेस बनने की कोई गुंजाइश नहीं बनने देना चाहते।

कहा जाता है कि पार्टी में शिवपाल सिंह यादव ने जो पकड़ बनाई, वह पहले मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई के रूप में बनाई, बाद में अखिलेश यादव के चाचा के रूप में।

जब समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में चलती थी तो शिवपाल यादव को ‘भैया’ का खिताब हासिल था।

मुलायम सिंह यादव तक सभी लोगों का पहुंचना आसान नहीं होता इस वजह से शिवपाल सिंह यादव समानांतर ‘पावर सेंटर’ बन गए थे।

फिर जब 2012 में अखिलेश यादव सीएम हुए तो शिवपाल यादव ‘भैया’ से ‘चाचा’ में बदल गए। जो लोग अखिलेश यादव तक पहुंच नहीं बना पा रहे थे, उन सबके लिए ‘चाचा’ पावर सेंटर बन चुके थे।

अखिलेश यादव को लगता है कि शिवपाल यादव अगर उनके साथ रहे तो उन्हें पार्टी के अंदर अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिल जाएगा। ‘चाचा’ की शक्ल में वह ‘पावर सेंटर’ में बदल सकते हैं।

इसलिए वह पहले दिन से स्थापित करने की कोशिश में रहे कि शिवपाल यादव का समाजवादी पार्टी के साथ बस उतना ही रिश्ता है, जितना ओमप्रकाश राजभर और पल्लवी पटेल का है।

इसलिए उन्होंने शिवपाल सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के विधायकों की बैठक में शामिल करने के बजाए सहयोगी संगठन के नेता के रूप में आमंत्रित किया था।

शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav)  को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर सपा के खिलाफ बड़ा रणनीतिक दांव चल सकती है भाजपा

सपा मुखिया अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रम ने भाजपा के लिए ‘चरखा दांव’ की नई जमीन तैयार कर दी है।

प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव की सत्ता खेमे से बढ़ रही नजदीकियों के बाद माना जा रहा है कि भाजपा नितिन अग्रवाल की तरह ही शिवपाल को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर सपा के खिलाफ बड़ा रणनीतिक दांव चल सकती है।

अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच लंबी चली खींचतान पर इस विधानसभा चुनाव में विराम लगता नजर आया। अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले शिवपाल अपने भतीजे व सपा मुखिया से कुछ सीटों के लिए बातचीत करते रहे, लेकिन अंतत: अखिलेश ने सिर्फ एक ही सीट उनके लिए छोड़ी।

उसके बाद प्रसपा अध्यक्ष परिवार में सब कुछ ठीक और परिवार की एकजुटता का संदेश देते रहे, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद परिस्थितियां फिर पहले जैसी होती महसूस हो रही हैं।

अखिलेश ने सपा विधायक दल की बैठक बुलाई, लेकिन उसमें शिवपाल को नहीं बुलाया, जबकि वह सपा के टिकट पर ही जसवंत नगर से चुनाव जीते हैं।

सहयोगी दलों की बैठक का न्योता पहुंचा तो प्रसपा मुखिया उसमें नहीं पहुंचे

इसके बाद जब सहयोगी दलों की बैठक का न्योता पहुंचा तो प्रसपा मुखिया उसमें नहीं पहुंचे। इसी बीच चर्चा शुरू हुई कि शिवपाल ने दिल्ली में भाजपा के कुछ नेताओं से भेंट की है।

वह बेशक, पुष्ट नहीं हुई, लेकिन यहां लखनऊ में वह जरूर मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर पहुंचे और योगी आदित्यनाथ से मिले।इधर, शिवपाल ने ट्विटर पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ को फालो करना शुरू कर दिया।

यह भाजपा के प्रति उनकी बढ़ती नजदीकियों के स्पष्ट संकेत हैं। तभी से चर्चा शुरू हो गई कि भाजपा शिवपाल को आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव लड़ा सकती है। उन्हें राज्यसभा भी भेजा जा सकता है।

नई अटकलों को जन्म दे दिया है

इन परिस्थितियों ने अब नई अटकलों को जन्म दे दिया है। माना जा रहा है कि छह बार के वरिष्ठ विधायक शिवपाल यादव को भाजपा विधानसभा उपाध्यक्ष बना सकती है। व्यवस्था अनुसार विधानसभा अध्यक्ष सत्ता दल का, जबकि उपाध्यक्ष विपक्ष का होता है।

जिस तरह भगवा रणनीतिकारों ने सपा खेमे में सेंध लगाते हुए उसके विधायक नितिन अग्रवाल को उपाध्यक्ष बनाया था, वैसे ही सपा विधायक शिवपाल पर दांव आजमा सकती है।

नितिन अब योगी सरकार-2.0 में आबकारी मंत्री हैं। ऐसा हुआ तो शिवपाल की कुर्सी नेता विरोधी दल अखिलेश के बगल में होगी। खास बात यह कि यदि प्रसपा मुखिया इसके लिए तैयार हो चुके होंगे तो सपा चाहकर भी भाजपा की इस रणनीति को असफल नहीं कर पाएगी।

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