शचीन्द्रनाथ सान्याल Shachindranath Sanyal (जन्म 3 अप्रैल 1893, वाराणसी में — मृत्यु 7 फरवरी 1942, गोरखपुर में)

महान क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल का आरंभिक जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में “बंगाल विभाजन” के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्षा व प्रेरणा देने का महान् कार्य किया।
शचीन्द्रनाथ सान्याल और उनके पूरे परिवार पर इसका प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वरूप ही ‘चापेकर’ बन्धुओं की तरह ‘सान्याल बन्धु’ भी साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवादी धारा के साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे।
शचीन्द्रनाथ न केवल देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध होकर स्वयं आगे बढ़ते रहे अपितु पिता के समान ही अपने तीनों भाइयों को भी इसी मार्ग पर ले चलने में सफल रहे।
‘काले पानी’ की सज़ा के दौरान अपने क्रांतिकारी जीवन और समकालीन क्रान्तिकारियों के जीवन एवं गतिविधियों पर लिखी अपनी पुस्तक “बंदी जीवन” की भूमिका में शचीन्द्रनाथ ने स्वयं लिखा है कि- “जब मैं बालक ही था, तभी मैंने संकल्प कर लिया था कि भारतवर्ष को स्वाधीन किया जाना है और इसके लिए मुझे सामरिक जीवन व्यतीत करना है”।
इसी उद्देश्य को अपनाकर शचीन्द्रनाथ वैचारिक एवं व्यहारिक जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहे।बाद में वह फिर से ब्रिटिश-क्रांतिकारी और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए, सान्याल को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया।
सच्चिंद्रनाथ सान्याल उन कुछ क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्हें पोर्ट ब्लेयर में लगातार दो बार सेलुलर जेल भेजा गया था।अपने समय के दौरान, सच्चिंद्रनाथ सान्याल टीबी से संक्रमित हो गये जिस कारण उसे गोरखपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था।
7 फरवरी 1942 को गोरखपुर जेल, उत्तर प्रदेश में उनकी मृत्यु हो गई थी। संजीव सान्याल, एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और अर्थशास्त्री, सच्चिंद्रनाथ सान्याल के भव्य भाई हैं।
सन 1942 में भारत का यह महान् क्रांतिकारी जर्जर शरीर के साथ चिर निद्रा में सो गये।