हिन्दुओं से भरी ट्रेन में :हिन्दुओ को जिन्दा जलाने के बाद फैली हिंसा की शिकार , बिलकिस बानो का पूरा मामला जानिए

हिन्दुओं से भरी ट्रेन में हिन्दुओ को जिन्दा जलाने के बाद फैली हिंसा की शिकार ,बिलकिस बानो का पूरा मामला जानिए
Photo Credit Jatin

गोधरा (गुजरात)। गुजरात के गोधरा स्टेशन से कुछ ही दूरी सी फालिया पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की बोगी एस-6 में बैठे 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था। जिनमें महिलाएं-बच्चे भी शामिल थे। फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की रिपोर्ट में बताया गया था कि 60 लीटर तरल ज्वलनशील पदार्थ बोगी में डाला गया था।

लगभग 2 हजार लोगों की भीड़ ने ट्रेन को घेर लिया था। रिपोर्ट के अनुसार ट्रेन पर पथराव किया गया था ताकि कोई बाहर न आ पाए। इसके बाद मध्य गुजरात में दंगे भड़क गए थे। जिनमें हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और ढाई हजार घायल हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोर्ट खुलने के साथ अहम फैसला सुनाते हुए गुजरात दंगों की पीड़ित बिलकिस बानो से गैंगरेप के दोषियों की रिहाई को खारिज कर दिया है. इस मामले में दोषियों को गुजरात सरकार ने सजा कम करते हुए रिहा कर दिया था. क्या था ये मामला जिसने पूरे देश में तहलका मचा दिया था. इसके बाद जब इसके दोषी जेल से जल्दी रिहा किए गए तो भी ये सुर्खियां बना. जानते हैं कि क्या था ये मामला.

कितनी उम्र कैद की सजा और इस मामले में क्या हुआ

दरअसल, उम्र क़ैद की सज़ा पाए क़ैदी को कम से कम 14 साल जेल में बिताने होते हैं. 14 साल के बाद इस फ़ाइल का फिर रिव्यू होता है. उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह के आधार पर सज़ा घटाई जा सकती है.कई बार क़ैदी को रिहा कर दिया जाता है. कई बार ऐसा नहीं होता. कई बार क़ैदी को गंभीर रूप से बीमार होने के आधार पर भी छोड़ा जाता है. हालांकि इस प्रावधान के तहत हल्के जुर्म के आरोप में बंद क़ैदियों को छोड़ा जाता है. संगीन मामलों में ऐसा नहीं होता.

बिलकिस बानो के साथ क्या हुआ था

27 फ़रवरी 2002 को ‘कारसेवकों’ से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग लगा दी गई थी. इसमें 59 लोगों की मौत हुई. इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गुजरात में दंगे भड़क उठे. दंगाइयों से बचने के लिए बिलकिस बानो साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और 15 लोगों के साथ गांव से भाग गई.तब वह 05 महीने की गर्भवती भी थी.

03 मार्च 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंचा. वहां वो खेतों में छिप गये. लेकिन उन्हें खोज लिया गया. दायर चार्ज़शीट के मुताबिक़ 12 लोगों समेत करीब 30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार पर हमला किया.

बिलकिस और 04 महिलाओं की पहले पिटाई की गई. फिर उनके साथ रेप किया गया. इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं. हमलावरों ने परिवार के कई लोगों उनके आंखों के सामने हत्या भी कर दी. हमले में 07 मुस्लिम भी मारे गए. ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे. मरने वालों में बिलकिस की बेटी भी शामिल थीं.

03 घंटे तक बेहोश रही बिलकिस

इस घटना के बाद बिलकिस कम से कम तीन घंटे तक बेहोश रहीं. होश आने पर उसने एक आदिवासी महिला से कपड़ा मांगा. फिर एक होमगार्ड से मिली, जो उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए लिमखेड़ा थाने ले गया. वहां कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने शिकायत दर्ज की. बाद में गोरी को अपराधियों को बचाने के आरोप में 03 साल की सज़ा मिली.

रिलीफ कैंप पहुंचाया गया

बिलकिस को गोधरा रिलीफ़ कैंप पहुंचाया गया और वहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया. उनका मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया

दरअसल गुजरात में वर्ष 2002 में दंगा हुआ. तभी बिलकिस बानो से नृशंस गैंगरेप तो हुआ ही, साथ ही उसके परिवार के 07 लोगों की आंखों के सामने ही हत्या कर दी गई. इसके बाद दोषियों को आजीवन कारावास की सजा हुई. मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 2008 में 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी. फिर बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगाई.

गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. ये रिहाई गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत की गई. जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गयाजिस पर देश में विवाद छिड़ गया. इसे लेकर जगह जगह प्रदर्शन हुए.

21 साल से भी ज्यादा पुराना बिलकिस बानो मामला एक बार फिर चर्चा में है। सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले के 11 दोषियों की रिहाई का गुजरात सरकार का फैसला रद्द कर दिया। अदालत ने दोषियों को दो हफ्ते के भीतर पुन: आत्मसमर्पण करने का भी आदेश दिया। ये सभी दोषी गुजरात के गोधरा में साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान बिलकिस बानो नाम की महिला से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में सजा काट रहे थे। इन्हें 15 अगस्त 2023 को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था।  

सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि जहां अपराधी के खिलाफ मुकदमा चला और सजा सुनाई गई, वही राज्य दोषियों की सजा माफी का फैसला कर सकता है। अदालत ने कहा दोषियों की सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार नहीं कर सकती बल्कि महाराष्ट्र सरकार इस पर फैसला करेगी। गौरतलब है कि बिलकिस बानो मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी। उच्चतम न्यायालय ये भी कहा कि दोषियों को रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला शक्ति का दुरुपयोग था।

कौन हैं बिलकिस बानो?

27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में गोधरा स्टेशन के पास आग लगा दी गई थी। इस घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। आगजनी की इस घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे। इन दंगों की चपेट में आए कई परिवारों में एक बिलकिस बानो का भी परिवार था। गोधरा कांड के चार दिन बार तीन मार्च 2002 को बिलकिस के परिवार को बेहद क्रूरता का सामना करना पड़ा। उस वक्त 21 साल की बिलकिस के परिवार में बिलकिस और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी के साथ 15 अन्य सदस्य भी थे। दंगाइयों ने बिलकिस के परिवार के सात लोगों को मौत के घाट उतारा दिया था।

बिलकिस के साथ क्या हुआ था?

27 फरवरी की घटना के बाद प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे फैल गए। दाहोद जिले के राधिकपुर गांव में बिलकिस बानो का परिवार रहता था। दंगा बढ़ते देख परिवार ने गांव छोड़कर भागने का फैसला लिया। उस वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं। वह अपने साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और परिवार के 15 अन्य सदस्यों के साथ गांव से भाग गईं।  

3 मार्च 2002 को परिवार चप्परवाड़ गांव पहुंचा और पन्निवेला गांव की ओर जाने वाले कच्चे रास्ते से लगे एक खेत में छुप गया। अदालत में दायर आरोपपत्र के मुताबिक, सजा पाने वाले 11 दोषियों समेत करीब 20-30 लोगों ने हसिया, तलवार और लाठियों से लैस होकर बिलकिस और उनके परिवार पर हमला कर दिया। हमले में बिलकिस की साढ़े तीन साल की बेटी समेत सात लोग मारे गए। 

साढ़े तीन साल की मासूम को पत्थर पर पटक-पटकर मार डाला

पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई के दौरान बिलकिस बानो के वकील ने दर्दनाक घटना का बखान किया था। उनकी ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता का कहना था कि यह एक आकस्मिक घटना नहीं थी, दोषी उनका पीछा कर रहे थे। दोषी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि वे कहां छिपे हुए हैं। वे खून के प्यासे थे।

वकील ने अदालत को बताया कि ‘जब बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं, तब उनके साथ कई बार क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी साढ़े तीन साल की बेटी को चट्टान पर पटक कर मार डाला गया था।’ वकील ने कहा कि वह हमलावरों से गुहार लगाती रहीं लेकिन उन्होंने उन पर या उनके परिवार पर कोई दया नहीं दिखाई।

परिवार के साथ भी दरिंदगी और बर्बरता

वकील ने आगे बताया, ‘बिलकिस की मां और चचेरी बहन के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई। चार नाबालिग भाई-बहन…उनकी चचेरी बहन का दो दिन का बच्चा…चाची-चाची, अन्य चचेरे भाई-बहनों की हत्या कर दी गई।’

वकील शोभा ने कहा कि जो शव बरामद किए जा सके, उनके सिर और छाती कुचले हुए पाए गए। उन्होंने कहा कि हालांकि 14 मौतें हुईं, केवल सात के शव ही बरामद किए जा सके, क्योंकि जिस स्थान पर घटना घटी वह सुरक्षित नहीं था।

घटना के बाद बेहोश हो गई थीं बिलकिस, उधार मांगे थे कपड़े

इस हमले में केवल बिलकिस, उनके परिवार के पुरुष सदस्य और एक तीन साल का बच्चा बच सका था। घटना के बाद बिलकिस कम से कम तीन घंटे तक बेहोश रहीं। होश में आने के बाद उन्होंने एक आदिवासी महिला से कपड़े उधार लिए। फिर उनकी मुलाकात एक होम गार्ड से हुई जो उसे लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन ले गया जहां उसने हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी के पास शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई के अनुसार, गोरी ने शिकायत के अहम तथ्यों को छिपाया और उसे तोड़-मरोड़ कर लिखा।

गोधरा राहत शिविर में पहुंचने के बाद ही बिलकिस को जांच के लिए एक शासकीय अस्पताल ले जाया गया। कुछ दिनों बाद उनका मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक गया। यहां से मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए गए। इसके बाद जनवरी 2008 में एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को दुष्कर्म, हत्या, गैर कानूनी रूप से इकट्ठा होने समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराया गया। इस मामले में सजा काट रहे 11 दोषियों को 15 अगस्त 2023 को रिहा कर दिया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। 

पुलिस ने केस को खारिज कर दिया था

जब पुलिस ने इसकी जांच शुरू की तो उसने सबूतों के अभाव में केस ख़ारिज कर दिया. फिर ये मामला मानवाधिकार आयोग के पास गया. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई. देश की सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई से नए सिरे से जांच का आदेश दिया. सीबीआई चार्ज़शीट में 18 लोगों को दोषी पाया गया. इनमें 05 पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी थे. पुलिस और डॉक्टर पर सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगा.

बार-बार जान से मारने की धमकियां मिलीं

बिलकिस बानो को कोर्ट में सुनवाई और सीबीआई जांच के दौरान बार बार जान से मारने की धमकियां मिलीं. उसने दो साल में 20 बार घर बदले.उसने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ़्ट करने की अपील की. मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया. सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी क़रार दिया. 07 को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया.

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