प्रयागवाल तीर्थ पुरोहित समाज की ओर से देव दिपावली मनाया गया

पूरे कार्तिक माह में पूजा, अनुष्ठान, जप,तप और दीपदान का विशेष महत्व होता है. कार्तिक माह में ही देवी लक्ष्मी की जन्म हुआ था और इसी महीने में भी भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागे थे.

ऐसी मान्यता है कि देव दिवाली के दिन देवी-देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाते हैं. इस मौके पर गंगा घाटों को कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।

इसलिए इस के दिन किसी नही, सरोवर या धर्म स्थान पर दीपदान करना चाहिए। कहा गया है कि इस दिन किसी पवित्र स्नान पर ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करें या फिर घर में ही गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए।

व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु के समक्ष शुद्ध देसी घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए। श्री हरि को तिलक कर धूप, दीप, फल, फूल, और नैवेद्य से पूजा आदि करें। शाम के समय फिर से भगवान विष्णु का पूजन करें।

भगवान को देसी घी में भूने आटे का सूखा कसार और पंचामृत का भोग लगाएं। इसमें तुलसी पक्ष जरूर शामिल करें। इसके बाद विष्णु जी के साथ मां लक्ष्मी का भी पूजन और आरती करें। रात के समय चंद्रमा निकलने के बाद अर्घ्य दें और फिर व्रत का पारण करें।

कार्तिक पूर्णिमा पर देवता पृथ्वी पर आकर गंगा में स्नान करते हैं। इसलिए इस दिन गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए या फिर पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए। इसी के साथ पूर्णिमा पर क्षमतानुसार अन्न वस्त्र का दान करना चाहिए।

पूर्णिमा तिथि पर चावलों का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है. पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा कीी जाती है और भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है। इसलिए पूर्णिमा के दिन तुलसी पूजन करना शुभ माना जाता है।

ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता का आगमन होता है कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करना बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि इस दिन देव दीपावली भी होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी नदी या सरोवर के किनारे दीपदान अवश्य करना चाहिए।

यदि नदी या सरोवर पर नहीं जा सकते तो देवस्थान पर जाकर दीपदान करना चाहिए। लक्ष्मी नारायण की पूजा : पूर्णिमा तिथि पर व्रत रखकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का पूजन करना चाहिए व चंद्रमा दर्शन करने के साथ ही अर्घ्य भी देना चाहिए।

माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर व्रत करने से सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ध्यान रखें कि तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा, अंडा, प्याज, लहसुन आदि का सेवन भूलकर भी न करें। इस दिन चंद्रदेव की कृपा पाने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।

भूमि पर ही शयन करें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन घर में किसी भी प्रकार का झगड़ा करने से बचें। किसी गरीब, असहाय, बुजुर्ग से कटु वचन नहीं बोलें. इतना ही नहीं, किसी का अपमान करने से भी बचें ऐसा करने से दोष लगता है।

सनातन धार्मिक ग्रंथों की मानें तो दैविक काल में एक बार त्रिपुरासुर के आतंक से तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया. त्रिपुरासुर के पिता तारकासुर का वध देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने किया था. उसका बदला लेने हेतु तारकासुर के तीनों पुत्रों ने भगवान ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या कर उनसे अमर होने का वर मांगा.

हालांकि, भगवान ब्रह्मा ने तारकासुर के तीनों पुत्रों को अमरता का वरदान न देकर अन्य वर दिया. कालांतर में भगवान शिवजी ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन तारकासुर के तीनों पुत्रों यानी त्रिपुरासुर का वध कर दिया. उस दिन देवताओं ने गंगा नदी के किनारे दीप जलाकर देव दिवाली मनाई. उस समय से देव दिवाली मनाई जाती है.

वर्तमान समय में भी हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है. हिंदू धर्म में कार्तकि पूर्णिमा सजाया जाता है. धार्मिक ग्रंथों की मानें तो देव दिवाली के दिन गंगा नदी में स्नान ध्यान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

इस दिन गुरुनानक जयंती भी मनाई जाती है. हिन्दू और सिक्ख धर्म के अनुयायियों देव दिवाली को धूमधाम से मनाते हैं.

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