सिक्खो में भी जातिय सामाजिक व्यवस्था-अजातशत्रु पंडित

सिक्खो में आपस मे जो भी जातिय सामाजिक व्यवस्था है कि किसी अन्य जाति का व्यक्ति को उनकी धार्मिक पुस्तक के पास खडे होने या हाथ लगाने पर बेअदबी मानी जाये और उसे तरपा कर, हाथ पांव काट कर मार दो भले ही एसा हो या न हो पर अगर पगडी वाला एसा कह रहा है तो इस बात को माना जाये।
फिर क्योकि बेअदबी के आरोप में व्यक्ति मारा गया था इसलिए सिख होते हुये भी सिख रीति-रिवाज से उसका अन्तिम संस्कार भी नही होने देने का फरमान जारी जिसका वहा के लोगो ने पालन भी किया।
वैसे तो सिखो का आपसी मजहबी मसला है। कानून को अपना काम यथोचित सभ्य समाज को बर्बर लोगो से बचाते हुये करना चाहिए।
पर ये गैर सिखो और पगडी न पहनने वाले सिखो के लिये भी, गुरूद्वारो मे जाने, रूकने या उनकी मजहबी जगहो के पास जाने से पहले समझना चाहिये कि कभी भी उनेअहे बेअदबी का आरोप लगाकर तडपा कर मारा जा सकता है।
लगभग छः महीने पहले भी शायद गुरूरासपुर जगह थी मे एक हिन्दु को गुरूद्वारे मे रात बिताने पर रात मे सर नही ढका होने पर बेअदबी का आरोप लगाकर मार दिया गया था।
और उनका समाज इन जनरल जैसा की कमेन्टस आदि दिखते है, इस तरह की हत्याओ का हिमायती है। भिन्डरावाला जैसे दुर्दांत आतंकियों की फोटो लगाये फिरना, उसका गुणगान करने वाले लोगो की उनके समाज में स्वीकार्यता इसी मानसिकता को दर्शाता है।
सिक्खो में आपस मे जो भी जातिय सामाजिक व्यवस्था है कि किसी अन्य जाति का व्यक्ति को उनकी धार्मिक पुस्तक के पास खडे होने या हाथ लगाने पर बेअदबी मानी जाये और उसे तरपा कर, हाथ पांव काट कर मार दो भले ही एसा हो या न हो .
पर अगर पगडी वाला एसा कह रहा है तो इस बात को माना जाये।
फिर क्योकि बेअदबी के आरोप में व्यक्ति मारा गया था इसलिए सिख होते हुये भी सिख रीति-रिवाज से उसका अन्तिम संस्कार भी नही होने देने का फरमान जारी जिसका वहा के लोगो ने पालन भी किया।
वैसे तो सिखो का आपसी मजहबी मसला है। कानून को अपना काम यथोचित सभ्य समाज को बर्बर लोगो से बचाते हुये करना चाहिए।
पर ये गैर सिखो और पगडी न पहनने वाले सिखो के लिये भी, गुरूद्वारो मे जाने, रूकने या उनकी मजहबी जगहो के पास जाने से पहले समझना चाहिये कि कभी भी उनेअहे बेअदबी का आरोप लगाकर तडपा कर मारा जा सकता है।
लगभग छः महीने पहले भी शायद गुरूरासपुर जगह थी मे एक हिन्दु को गुरूद्वारे मे रात बिताने पर रात मे सर नही ढका होने पर बेअदबी का आरोप लगाकर मार दिया गया था।
और उनका समाज इन जनरल जैसा की कमेन्टस आदि दिखते है, इस तरह की हत्याओ का हिमायती है।
भिन्डरावाला जैसे दुर्दांत आतंकियों की फोटो लगाये फिरना, उसका गुणगान करने वाले लोगो की उनके समाज में स्वीकार्यता इसी मानसिकता को दर्शाता है।
Dislaimer लेखक अजातशत्रु पंडित के निजी विचार हम सहमत या असमहत नहीं